सूर्य ग्रह और ज्योतिषशास्त्र !!
सूर्य सम्पूर्ण जगत के पालक हैं । सूर्य के बिना जगत की कल्पना मात्र भी सम्भव नहीं है । देव ग्रहों की श्रेणी में आने वाले सूर्य स्वभाव से क्रूर माने जाते हैं । आत्मा के कारक सूर्य देव की उपासना का प्रचलन भारत में वैदिक कल से ही रहा है । जहाँ सूर्य प्रकाश के कारक हैं, वहीं इनके पुत्र शनि, अंधकार के कारक हैं।
ये पेट, आँख, हड्डियों, हृदय व चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं । सूर्य सातवीं दृष्टि से देखते हैं व इनकी दिशा पूर्व है । सूर्य की महादशा छः वर्ष की होती है । कुंडली के दशम स्थान में सूर्य देवता (Sun Planet ) को दिशा बल मिलता है ।
चंद्र, मंगल, गुरु सूर्य देव के मित्र व शुक्र तथा शनी शत्रु की श्रेणी में आते हैं । ज्योतिष शास्त्र में मेष लग्न की कुंडली में सूर्य को इष्ट देव माना जाता है । सिंह लग्न की कुंडली के इष्ट देव वृहस्पति देवता होते हैं । कृतिका , उत्तराशाढा व उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र सूर्य देव से सम्बन्धित हैं । पिता के कारक सूर्य देवता मेष राशि में उच्च व तुला राशि में नीच के माने जाते हैं।
कुंडली मे सूर्य यदि अशुभ स्थिति में हो तो नेत्र, सिर, हड्डियों, पेट और हृदय आदि सम्बन्धित रोग उत्तपन्न होते हैं।
दिन – रविवार
रंग – लाल
अंक – 1
दिशा – पूर्व
राशिस्वामी – सिंह ( Leo )
नक्षत्र स्वामी – कृतिका, उत्तराशाढा, और उत्तराफाल्गुनी
रत्न – माणिक्य (Ruby)
धातु – सोना (Gold)
देव – शिव (Lord Shiva)
मित्र ग्रह – गुरु, चंद्र और मंगल
शत्रु ग्रह – शुक्र, शनि
उच्च राशि – मेष (Aries)
नीच राशि – तुला (Libra)
मूल त्रिकोण – सिंह (Leo)
महादशा समय – 6 वर्ष
सूर्य का बीज मन्त्र – ‘ॐ हृां हृौं सः सूर्याय नमः
सूर्य का मूल मंत्र – ॐ सूर्याय नम:
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